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पति परमेश्वर होता है ?

पति ने अपनी नवविवाहिता पत्नी से पूछा, “पति के बारे में तुम्हारा क्या विचार है? पत्नी को पति को क्या मान कर व्यवहार करना चाहिए?”
पत्नी ने कहा, “पति पत्नी तो जीवन साथी हैं, पत्नी उसके सुख-दुःख में सहभागिनी है। उसे पति के साथ जीवन पथ पर कंधे से कंधा मिला कर चलना चाहिए।”
पत्नी के विचार सुन कर पति को अच्छा नहीं लगा। उसने कहा, “तुम्हारे विचार भारतीय संस्कृति के अनुरूप नहीं हैं। हमारे यहां पति को परमेश्वर मान कर उसकी पूजा का विधान है। पत्नी उसकी अनुगामिनी है। वह किसी भी दृष्टि से उसकी बराबरी नहीं कर सकती। मैं चाहता हूं कि तुम मुझे पति परमेश्वर के रूप में मान्यता दो।” पत्नी ने कहा, “ठीक है, मैं आपको परमेश्वर मान कर ही व्यवहार करूंगी।”
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दूसरे दिन पत्नी ने स्नान से निवृत होकर प्रातः 5 बजे पति को जगाया, “उठिये, जल्दी से स्नान कर पूजा घर में चलिए, मुझे पूजा करनी है।”
पति ने कहा, “मुझे क्यों तंग करती हो? मुझे सोने दो, तुम जाकर अपनी पूजा करो।”
पत्नी, “पूजा तो मुझे आपकी करनी है और जब तक आप नहा-धोकर आसन पर नहीं बैठ जाते, मैं पूजा कैसे कर सकती हूं?”
पति, “सुबह-सुबह मज़ाक मत करो, मेरी पूजा-वूजा की ज़रूरत नहीं है।”
पत्नी, “ठीक है, जब तक आप पूजा स्वीकार नहीं करते, मैं भी भूखी-प्यासी बैठी रहूंगी।” अब विवश पति को उठना ही पड़ा। नहा कर आसन पर बैठा कर पत्नी ने विधिपूर्वक पूजा-आरती की, पति को प्रसाद लगाया स्वयं खाया।
पति ने कहा, “आज नाश्ते में आमलेट बनाना।” कुछ देर बाद पत्नी ने चाय और
आलू के पराठे सामने रखे
पति, “यह क्या, मैंने आमलेट के लिए कहा था।”
पत्‍नी, “हां, कहा था, पर भगवान् को अंडा-मांस का भोग नहीं लगाया जाता।” पति ने पत्‍नी को घूर कर देखा, किसी प्रकार गुस्से को पीकर नाश्ता किया, फिर पत्‍नी से बोला, “आज लंच में गोभी की सब्ज़ी और मटर पुलाव बनाना।” खाने के समय पत्‍नी ने भोजन परोसा- अरहर की दाल, बैंगन का भुर्ता और चपाती।
पति, “यह क्या मैंने मटर पुलाव और गोभी की सब्ज़ी के लिए कहा था।”
पत्‍नी, “देखिये भगवान् को जो भोग लगाया जाता है, वह उसे स्वीकार कर लेते हैं, अपनी पसंद नहीं जताते।”
पति ने झल्ला कर कहा, “यह क्या सुबह से भगवान्-भगवान् लगा रखा है, मैं पत्थर की मूर्ति नहीं हाड़ मांस का इन्सान हूं।”
पत्नी, “पर मैं तो आपको भगवान् मान कर चल रही हूं।” पति ने किसी प्रकार खाना निगला। फिर जाते हुए बोला, “शाम को पार्टी में चलना है। नीली साड़ी ज़री वाली और हीरे का नेकलेस पहनना।” शाम को पति ने पत्नी को आकर देखा। पत्नी ने क्रीम कलर का सलवार कुर्त्ता पहन रखा है और गले में मोतियों की माला। अब तो पति का पारा ऊंचा चढ़ गया। वह चीख उठा, “मैंने तुम्हें नेकलेस और साड़ी पहनने को कहा था।” पत्नी ने शांत मुद्रा में कहा, “हां, कहा था।”
पति, “फिर क्यों नहीं पहना।”
पत्नी, “देखिये, आप पूजनीय है। आपकी पूजा करना मेरा धर्म है, मैं आपकी हर बात मानने को बाध्य नहीं हूं।”
पति, “यह क्या बात हुई।”
पत्‍नी, “बात साफ़ है। आप भगवान् को मानते हैं, भगवान् की नहीं मानते, भगवान् कहते हैं, धर्माचरण करो, सबसे प्रेम करो, छल कपट न करो, किसी को मत सताओ, पाप की कमाई न खाओ। पर आप उनकी कोई बात मानते हैं? आप अपनी सुविधानुसार धर्म को मोड़ लेते हैं। मैं भी आपको परमेश्वर मान कर वैसा ही व्यवहार कर रही हूं। मैंने तो आपकी जीवन संगिनी व सहगामिनी बन कर आचरण करना चाहा था, पर आप तो परमेश्वर जैसा व्यवहार चाहते हैं।
मैं आपकी पूजा-अर्चना करूंगी पर बात मानना न मानना मेरी सुविधा व रुचि पर निर्भर है अब आप स्वयं निर्णय कर लीजिए कि आप मुझे पति परमेश्वर की पुजारिन बनाना चाहते हैं या जीवन साथी की सहयोगिनी।”




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