कडुवा सच*
एक छोटे से गाँव मे पति पत्नी बड़े प्यार से रहते थे। पत्नी का नाम सलोनी और पति का राहुल था, उन दोनों का एक ही बेटा, वह भी पढ लिखकर शादी करके शहर मे बस गया था। अभी कुछ महीने हुये राहुल की पत्नी सलोनी को लकवा मार गया था जो चल फिर नहीं सकती थी। इसलिए हफ्ते के चार दिन उसका पति राहुल अपनी धर्मपत्नी को टोकरी मे पिछे बिठाके सर मे उठाके इलाज के लिए बैध जी के पास ले जाया करते थे। ऐसे बिमारीयो के लिए गाँव बस्ती मे बसने वाले बैध बड़े ही निपुणता से जंगली जड़ी बूटीयो से इलाज करने मे सक्षम होते हैं। मगर पति का इस तरह सलोनी को सर पे उठाके ले जाना बिल्कुल पसंद नहीं था, क्योंकि रास्ते भरमे अपने पति के उपर हंसते हुए लोगों को देखकर दर्द से उसके आशू छलक पड़ते थे। मगर उसके पागल पति राहुल को कौन समझाये। जिद्दी तो पूछो मत, जो अच्छा काम करने की ठान ले तो पूरा करके ही दम लेता है चाहे दिन कितने ही क्यों न लग जाये।
सलोनी - आप न..और कोई व्यवस्था किजीऐ। मुझे आपके सर पे बैठकें जाना अच्छा बिलकुल नहीं लगता जी।
राहुल - ओह, इसका मतलब तूझे जो अच्छा लगे अब मैं वही करूँ क्या?
सलोनी - ऐसी बात नही है क्योंकि आपकी खुशी मेरी जिंदगी । मगर लोग आप पर हंसते है जो मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता। इससे अच्छा कि आप हमारे इलाज के लिए तकलीफ न करे और न अपना अपमान। आप साथ हो तो जिंदगी मैं यू ही मुस्कुराके बिता सकती हूँ।
राहुल ..अपनी पत्नी पूजा के बिलकुल करीब आके, पत्नी के झूके सर को अपने हाथों से उपर उठाके प्यार से कहता है..
अरे पागल....मैं जानता हूँ लोग मेरा मजाक उडाते है मेरा अपमान करते है मगर सवाल मेरी जिंदगी और खुशियों का है। और मैं मेरी जिंदगी और मेरी खुशियों के लिए जिंदगी भर अपमानित होने के लिए तैयार हूँ । क्योंकि तुम ही मेरी खुशी और तुम ही मेरी जिंदगी हो तुम्हारे बिना जीने से अच्छा है मर जाउ
सलोनी - छी...आप कितनी गंदी बात करते हो, आपके सहारे तो हम जिंदा है। आप ही तो मेरे खुदा हो आप नहीं तो फिर सलोनी किस काम
फिर राहुल अपनी पत्नी सलोनी को पिठ पिछे टोकरी मे बिठाके चल पड़ता है बैध जी के पास, रास्ते पर लोगों की हंसने की आवाज कानों मे गूँजती है राहुल की, मगर ज्यादा तकलीफ उसको सलोनी के वजह से होती है जो जानता था की इस वक्त उसकी प्यारी पत्नी पति के अपमान सहन न सकने के कारण अपना सर झूकाये रो रही होगी
मगर दोनों बैध के पास जाके पत्नी के पैरों की मालिश करके वापस आते है मगर इस बार राहुल ने ठान लिया था कि आज आर या पार, उसे परवाह बिलकुल नहीं थी अपने अपमान की, मगर उसे परवाह थी तो बस अपने पत्नी सलोनी के आशूओ की जो पति के अपमानित पर पलकों से बहते थे।
एक चौक जैसा था जहाँ एक छोटी सी चाय बिडी की दुकान थी जहाँ ज्यादातर वही लोग जमा रहते थे जिनका घर मे कोई काम नहीं होता था और दिनभर अमेरिका से लेके जापान और जापान से लेके सोवियत संघ की बातें करते थे जैसे वह रोज आते जाते हो इन देशों में ।और दूसरों की बुराई? ?? पूछो मत,
औरतों से दो कदम आगे होते है ऐसे लोग। पत्नी सलोनी को कुछ पता नहीं राहुल के इरादे। राहुल उसी चौक की दुकान पे आके अपनी पत्नी को टोकरी सहित निचे उतारता है। यंहा तक वह किसी की मदत लेके खुद को कमजोर साबित नहीं करना चाहता था निकम्मे लोगों के सामने खुद को। सलोनी तो और शर्मींदा होके सर झूकाये बैठी रही। क्योंकि हँसने और ताने देने वाले येही लोग थे।
राहुल दुकानदार से..भैया जरा एक गिलास पानी दीजिए और दो कप गरमा गरम चाय पिलाईये,
दुकानदार - जरूर मोक्तान भाई,
तभी एक आदमी कहता है की.. मोक्तान भाई? (राहुल moktan) अभी भाभीजी की हालत मे कुछ सुधार हुआ क्या?
बस राहुल येही तो चाहता था की कोई बात शुरू करे ताकी वह हर सवाल का जवाब दे सके ताकी आगे से उसकी पत्नी पूजा को कभी सर झूकाके रोना न पड़े।
राहुल - मैं तो चाहता हूँ कि मेरी सलोनी कभी ठीक ही न हो,
सलोनी भी चौक जाती है भीड़ के साथ साथ अपने पति के बातों को सुनकर
भीड़ - ऐसा क्यों भाई? क्या आपको अपने पत्नी से प्यार नहीं ।
राहुल - मेरी पत्नी का नाम सलोनी है। समझ लिजीये मेरी मोहब्बत मेरी जिंदगी की येही सलोनी है। रही ठीक न होने की बात तो, अब तो एक आदत सी हो गयी है अपने पत्नी को पिठ पिछे उठाके घुमने की,
भीड़ - आदत तो ठीक है मगर पत्नी को सर पे उठाना मर्द के लिए शोभा की बात नही होती।
राहुल -HAHAHA..शोभा?
फिर प्रिंस आगे कहता है कि ए जो आपके सर पे आपके नेपाली टोपी है इसे क्या आप पैरों मे पहन सकते हैं?
भीड़ एक साथ चिल्लाके कहती है, ये टोपी ही नहीं हमारी नेपाली जाती का मुकुट हमारी इज्जत हमारा गौरव है हम कैसे इसे पैरों मे पहन सकते है हाँ। तुम खुद नेपाली होके अपने गौरव का अपमान करने पे तुले हो?
राहुल - बिलकुल नहीं । मेरे सर की नेपाली ढाका टोपी कोई मुझे करोडो रूपयो का अफर देके पैरों मे पहन ने को कहे तो भी मैं ठुकरा दू उन पैसों का। मुझे मरना पसंद है मगर अपने सर के टोपी को पैरों मे पहनना बिल्कुल गंवारा नहीं मुझे । जैसे सर की पगड़ी राजा का ताज या मुकुट को अपनी इज्जत के लिए पहनते है उससे भी कहीं बड़ी इज्जत हम मर्दो के लिए औरत की होती है। चाहे बेटा बिगड़ जाये मा बाप की उतनी बदनामी नहीं होती मगर एक बेटी के बिगड़ जाने से पूरा खानदान बदनाम हो जाता है। पति कोठे तक दारू की दुकान भी जा सकता है मगर एक पत्नी एक अच्छे बिचार लेके किसी गैर मर्द से थोड़ी बात करते हुए देख लिया तो लोग हजारों बातें बनाते हैं इसका मतलब दुनिया मे हर इज्जत और मान सम्मान एक औरत से जुड़ा होता है। एक कोठे पे जाने वाले लड़के को हजारों लड़कीया मिल जायेगी शादी के लिए। यंहा तक दहेज भी भरपूर मिल जाता है मगर एक कोठे पे मजबूरी मे बैठी लड़की कल को येदी शादी के ख्वाब भी देखे तो वह गुनाह बन जाता है।
कयी जगह आज भी हमारे भारत देश मे शादी से पहले लड़कियों का जांच किया जाता है की ये पहले ये किसी के साथ हम बिस्तर हो चुकी है की नहीं मगर लडको के साथ क्यों नहीं होता हाँ? इसका सीधा सा मतलब है की हमारी सारी इज्जत औरत से जुड़ी है। जैसे सर के पगड़ी हो या मुकुट को इज्जत मानकर सर मे पहनते है तो फिर मैंने अपने घर की इज्जत अपनी धर्मपत्नी को इलाज के लिए सर पा उठाके ले जाता हूँ तो लोगों को कष्ट क्यों होता है हाँ? कोई भी नारी बेबस नहीं होती । वह अपना भार अपना बोझ खुद उठाना जानती है।
कल मेरी बेवकूफ पत्नी ने मुझसे कहा की..मैं आजीवन आपका एहसानमंद रहूंगी ।
मैं उस वक्त कुछ नहीं बोला मगर आज कहता हूँ कि दुनिया का कोई भी मर्द ये न कहे की मैंने एक लड़की या एक औरत पे एहसान किया है क्योंकि एहसान का पूरा डिपार्टमेन्ट औरत के हिस्से मे होती है। नौ महीने कोख मे बच्चा माँ की पेट मे होता है। वह उसे जन्म दे या मार दे उसके हाथों मे होता है। हम कहते है कि हर मर्द को बिस्तर पर औरत चाहिए मगर बेटी किसी को नहीं।
मगर न भुलते कि मर्द के पेट मे नहीं औरत के पेट मे होता है बच्ची। किसी के जबर्दस्ती पर औरत पर कोई असर नहीं होता । गर वह ठान ले कि मुझे बच्ची पैदा करना है तो करना ही है। उसे कोई रोक नहीं सकता। इसलिए हर मर्द औरत के एहसान तले दबा है और हम मर्द कुछ ऐसे है की की उस एहसान के बदले औरत को दबा रहे हैं।
पता है आप सभी को? मैं जब बिमार था तो मेरे बिस्तर पे चाय नाश्ता खाना कपड़े मुँह धुलाई सबकुछ बिस्तर पे होता था, जबकी मैं चल सकता था, मगर जब से ये बिमार हुई है मेरी जिंदगी की गती थम सी गयी है।
क्यों ऐसा फर्क? मेरे बिमार होने पर भी मेरी जिंदगी पहले की तरह भाग रही थी मगर ये क्या बिमार हुई जिदगी ने अपना रफ्तार ही भुला दिया।
हम मर्द सोना जानते है अपने पत्नी से तो
उठना भी खीखना होगा,
सच कहूँ तो गर एक दिन के लिए भी दुनिया के हर नारी को ईश्वर ने एक साथ बिमार बना दिया न तो....
शायद धरती की गती ही रूक जाये।
कड़वी बात कह दी मैंने माफी चाहता हूँ मगर
क्या करूँ....सच है
फिर राहुल अपनी पत्नी पूजा के पास आके उसे कहता है। तू मेरी इज्जत है । इसलिए जहाँ भी बैठ सर उठाके बैठना, सलोनी अपने पति के प्यार को अपने प्रति देख के टोकरी से जानबूझकर निचे गिरके अपने पति के चरणों मे लिपटकर फफक फफक कर रो पड़ती है और कहती है कि... तमाम नारीयो को एक अच्छा समझदार पति दे मेरे पति राहुल जैसा जो अपनी पत्नी अपनी बेटी अपनी बहन और सड़क स्कूल कॉलेज हर जगह मिले नारियो का सम्मान कर सके
राहुल अपनी पत्नी सलोनी को जैसे ही उठाके टोकरी मे लगाना चाहता है घर के लिए तभी दुकान पर खड़ी भीड़ बड़े प्यार और सम्मान से उन दोनों की मदत करते है और फिर राहुल से माफी माँगके सम्मान के साथ दोनों पति पत्नी को बिदा कर देते हैं ।
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