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एक अधूरा ख्वाब।💝



मेरी नींद रोज़ सुबह अपने आप 6 बजे से पहले खुल जाती है, पुरानी आदत है, पर जब तक मैडम थीं तो एक आदत थी कि जब तक वो हमें कॉल न करतीं और हमें गुड मॉर्निंग न बोलतीं हम बिस्तर नहीं छोड़ा करते। लेटे लेटे वो शायद पांच या दस मिनट का रोज़ का इंतज़ार अपने आप में बहुत मीठा सा ज़ायका लिए हुए होता था। वो भी जानती थी कि मैं जग जाता हूँ क्यों कि पहली रिंग में ही फोन उठ जाता था और उस तरफ से रोज़ वही एक बात, " गुड मॉर्निंग, मेरे गुड बॉय उठो, जल्दी से तैयार हो नाश्ता करो और ऑफिस में मिलो"। इतना काफी होता था मेरा दिन बनाने के लिए, एक परफेक्ट दिन, लगभग शायद 6 साल बिना एक भी दिन मिस किये मेरी हर सुबह ऐसे ही होती थी, जिस दिन छुट्टी होती थी उस दिन बस ऑफिस में मिलने वाली बात नहीं बोली जाती थी।
17 नवम्बर 2010, उसकी शादी से ठीक 5 दिन पहले, ठीक ठाक सी सर्दी थी, हम उस समय तीन बैचलर्स एक साथ रहते थे तीन कमरे के बड़े से घर में मगर मैं उस दिन उन तीन कमरों में अकेला ही था, बाकी दोनों छुट्टी लेकर घर गए हुए थे, हालांकि मेड मेरा खाना बना कर गयी थी मगर उन दिनों तो मेरी ज़िंदगी टाइम बम की तरह थी जिसकी उलटी गिनती शुरू हो चुकी थी ऐसे में खाना हलक से उतरता ही नहीं था। रात के ग्यारह बजे थे, फ़ोन की घंटी बजी, देखा मैडम की कॉल थी, फोन उठाया और बोला "हाँ दुल्हन आंटी" वहां से तपाक से जवाब आया " ऐ आंटी किसको बोला" और हम दोनों ठहाका लगा कर हँस दिए। "खाना खाया?" मैंने कहा "हाँ खा ही लिया", "खा ही लिया से क्या मतलब", यार मैं वैसे ही इतनी मुश्किल से खुद को संभाले हुई हूँ ऊपर से तुम खाना वाना छोड़ दोगे तो मेरे लिए और मुश्किल कर दोगे, चलो दस मिनट में फोन करो खा कर"। मेरे अंदर किसी ने रॉकेट इंजन लगा दिया शायद, मैंने तुरंत खाना खाया, दसवां मिनट तब हुआ जब मैं फोन लेकर उसको मिला रहा था। पहली घंटी में ही फोन उठ गया "हम्म खा लिया"?, मैंने कहा "हम्म", " गुड बॉय", जीवन में मुझे इससे पहले भी मुझे तारीफ़ मिली और इसके बाद भी, इनाम भी मिले, मगर वो जो उसके मुंह से"गुड बॉय" सुनने में जो मेरे होंठों पर मुस्कान आती थी वो फिर कभी नहीं आयी। " तुम्हारे बिना ज़िन्दगी सोची भी नहीं थी मैंने, सोचा था किस्मत कुछ साथ देगी तो........" उसने एक लंबी सांस छोड़ी , "खैर छोड़ो", और बताओ क्या हाल हैं", । " मेरे हाल पूँछ रही हो, 6 साल दूर से सिर्फ तुमको मुस्कुराते हुए देख कर गुज़र गए, कितना अच्छा होता न कि ज़िन्दगी इस 6 साल के दायरे से बाहर ही नहीं जाती"। ये कह कर मैं खामोश हो गया और टीवी के चैनल चेंज करने लगा हालाँकि रिमोट ले कर मैं सिर्फ बटन दबाता जा रहा था, उस पर क्या आ रहा था, उस पर ध्यान ही कहाँ था, टीवी को म्यूट किया हुआ था मैंने, सिर्फ उसकी साँसें सुन रहा था मैं, एक दम ख़ामोशी थी चारों तरफ। पता नहीं कितनी देर ये खेल चलता रहा, मुझे लगा मैडम सो तो नहीं गयीं, मैंने हल्का सा झूठ मूठ का खाँसा, वो तुरंत बोली " जग रही हूँ, तुमको सुन रही थी,"? "पर मैंने कुछ बोला ही कहाँ", "तुम जब नहीं बोलते हो, तब बहुत कुछ बोलते हो, इतने सालों से यही तो रिश्ता रहा है हमारा, सुनो, ऐसे ही रहना हमेशा, कभी बदलना मत, इतने ही स्वीट, इतने ही इनोसेंट, तुम्हारी सबसे बड़ी खूबी तुम्हारे अंदर जो दिल है वो एक दम बच्चों जैसा है, उसको इतना ही साफ़ रखना, ज़िन्दगी की किसी भी कड़वाहट को इसमें मत भरना"। "क्या हुआ सो गए क्या"? उसने धीमे से पूँछा, "नहीं, अपनी तारीफ़ सुन रहा था, जाने तुमको क्या क्या गलत फहमी है, मैं और स्वीट, इनोसेंट? मेरे अंदर दुनिया भर के प्रेम चोपड़ा और अमरीश पुरी भरे हुए हैं, तुमने कभी मौका ही नहीं दिया" हम दोनों फिर से एक साथ हँसने लगे।
रात में टीवी पर पुराने गाने आते हैं, मैंने उस ही चैनल पर रोक दिया, और हल्की सी आवाज़ खोल दी, वो बोली " लेटे नहीं हो क्या, टीवी देख रहे हो?" मैंने कहा "पता नहीं अब कितने घंटों का साथ है तुम्हारा, जग लेने दो हर पल में मुझे, देख लेने दो वो पल भी जहाँ यकीन हो मुझे कि तुम अब मेरी नहीं हो"। तभी गाना टीवी पर आ गया "लग जा गले कि फिर ये हंसीं रात हो न हो, शायद फिर इस जन्म में मुलाक़ात हो न हो"। ये सुनकर पता नहीं क्या हुआ मुझे कुछ अजीब सा लगा, मैंने ध्यान से सुना, तो बहुत दबी हुई सिसकी सुनी उसकी, मैंने गंभीरता से उसका नाम लिया, उसने कोई जवाब नहीं दिया मगर सिसकी बढ़ती गयी, मैंने फिर पुकारा उसका नाम, वो थोड़ा सा अपने आंसुओं को संभालते हुए रुंधे गले से बोली " इतने सालों से तुमको देख कर सिर्फ हँसना जाना है मैंने, आज रो लेने दो मुझे जी भर कर, क्या पता तुम मुझे फिर कभी रोने के लिए भी नसीब न हो"। उसकी बात का मेरे पास कोई जवाब ही नहीं था, अगर कुछ था तो मेरी भी आँखों के किनारों का गीलापन था, मैंने टीवी बंद की, और वहीँ बैठा रहा थोड़ी देर, न उसने कुछ कहा और न मैंने, उस समय यूँ लगा जैसे दुनिया में सिर्फ हम दोनों ही थे और बाकी सब शून्य था। उस समय मैं उसकी धड़कन पहचान रहा था, क्योंकि उस ही धड़कन के साथ मेरा भी दिल धड़क रहा था, बिछड़ने का दर्द था उसमे, मैंने चुप रहना उस समय बेहतर समझा और अपनी आँखें मैंने जैसे ही बंद की ऐसा बाँध टूटा उनमे से कि जाने कितने साल के आँसू थे जो रोक के रखे थे, शायद इस ही दिन के लिए। कॉल कट गयी, पता नहीं क्या हुआ, मुझे पलट कर कॉल करने की हिम्मत भी नहीं हुई।
मैंने मोबाइल कुर्ते के जेब में रखा और मुंह धोया, फिर रसोई में गया और चाय बनाने लगा। पता नहीं इस समय उसको देखने की हुड़क बहुत तेज़ हो गयी, 6 साल तक उसकी मुस्कराहट तो रोज़ देखी मगर उसका एक भी आँसू नहीं देखा, यही वजह थी कि उसको एक बार मैं अपने नाम पर रोते हुए देखना चाहता था। इतने में मेरा मोबाइल बजा, मैंने जैसे ही उठाया उधर से आवाज़ आयी " मुझे माफ़ कर देना, मैं अपने माँ बाप की वजह से ये शादी कर रही हूँ, तुमको तो पता ही है सब्", मैंने जवाब दिया "पागल हो क्या इसमें माफ़ी कहाँ से आ गयी, तुमने जो किया उस पर गर्व है मुझे, अगर तुम ऐसा नहीं करतीं तो मुझे अफ़सोस होता, माँ बाप से बढ़ कर कुछ है ही नहीं इस दुनिया में"। वो थोड़ा शांत हो कर बोली, "सुनो, एक बात के लिए माफ़ कर पाओगे मुझे", " क्या बात है बोलो?", मैं कंधे और सर के बीच में मोबाइल एक साइड में दबा कर चाय छानते हुए बोला, " क्या मुझे इजाज़त दोगे कि आज के बाद मैं तुम्हे कभी फोन न करूँ"? इतना सुनते ही मेरे पाँव तले जमीन खिसक गयी, यूँ लगा जैसे कोई कह रहा हो कि अपना वजूद भूल जाओ, मेरे माथे पर पसीना आ गया एक दम, धड़कन तेज़ हो गयी, "क्या हुआ कुछ बोलो न?" "हम्म, क्या बोलूँ तुमने तो सीधे साँसें ही मांग लीं, बड़ा महंगा गिफ्ट ले रही हो अपनी शादी का मुझसे" अपना थूक गटकते हुए मैंने उसको बोला "जैसा तुमको ठीक लगे"। इतने में उसके दरवाज़े पर किसी ने खटखटाया, वो एक मिनट का बोल के चली गयी, मैं कांपते हाथ से मोबाइल पकडे हुए था, क्यों की अंतिम लम्हा आने वाला था। वो वापस आ कर लेट गयी, फोन उठाकर बोली, " जाने का टाइम हो गया, आज पहली बार मुझे ये लग रहा है कि जाने तुमसे कितना कुछ कहना बाकी रह गया है और न जाने कितना तुमसे सुनना बाकी रह गया है"। और ये सही भी था, 6 घंटे की उस कॉल में न तो उसके पास ज्यादा कुछ था कहने को और न ही मेरे पास, मगर उस दिन न उसकी बात ख़त्म हुई और न ही मेरी। वो मेरा नाम ले कर बोली लव यू, और मैं रुंधे गले से लव यू टू बोल कर सर से पाँव तक कांपने लगा, अब...अब ... अब, ये अंत का इंतज़ार बहुत बुरा था, न उसकी हिम्मत फोन काटने की हुई और न ही मेरी, मैं फोन को लेकर बालकनी में आया, 18 नवम्बर सुबह पांच बज कर दो मिनट पर मैंने खुद ही फोन काट दिया, सामने से सूरज निकल रहा था, उस दिन फिर मेरी सुबह उसके साथ हुई थी मगर शायद......... आखरी बार।


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