मैं नहीं हारी : मीनाक्षी को हुआ मर्द की कमी का एहसास
आज मीनाक्षी के जोश की हवा निकल गई. वह धर्मेंद्र को कहती थी कि औरत को अकेला रहने दो, लेकिन आज एक के बाद एक शिकारी के चंगुल में फंसती मीनाक्षी को मर्द की कमी का एहसास हो गया. आखिर मीनाक्षी खुद को इन भेडि़यों के चंगुल से कैसे बचा पाई?
‘’छोड़ दीजिए मुझे,‘‘ आखिर मीनाक्षी गिड़गिड़ाती हुई बोली.
‘‘छोड़ दूंगा, जरूर छोड़ दूंगा,’’ उस मोटे पिलपिले खूंख्वार चेहरे वाले व्यक्ति ने कहा, ‘‘मेरा काम हो जाए फिर छोड़ दूंगा.’’
वह व्यक्ति मीनाक्षी को कार में बैठा कर ले जा रहा था जब वह सहेली के यहां से रात 11 बजे पार्टी से निबट कर अकेली अपने घर जाने के लिए सुनसान सड़क पर औटो की प्रतीक्षा कर रही थी तभी काले शीशे वाली एक कार न जाने कब उस के पास आ कर खड़ी हो गई. वह संभले तब तक कार का दरवाजा खुला और उसे खींच कर कार में बैठा लिया गया. कार अपनी गति से दौड़ रही थी. यह सब अचानक उस के साथ हुआ. जब वह सहेली के यहां से निकली थी, तो उस ने अपने पति धर्मेंद्र को फोन किया था, ‘‘मैं निकल रही हूं,‘‘ तब धर्मेंद्र ने कहा था, ‘‘मैं आ रहा हूं तुम्हें लेने. तुम वहीं रुकना.’’
उस ने इनकार करते हुए कहा था, ‘‘नहीं धर्मेंद्र, मत आना लेने. मैं आ जाऊंगी. औरत को भी खुद पर निर्भर रहने दो. मैं औटो कर के आ जाऊंगी.‘‘
सच, अकेली औरत का रात को घर से बाहर निकलना खतरे को न्योता देना था. इस संदर्भ में कई बार वह धर्मेंद्र को कहती थी कि औरत को अकेली रहने दो. मगर आज उस के जोश की हवा निकल गई थी. उस को किडनैप कर लिया गया था. वह व्यक्ति उस के साथ क्या करेगा? वह उस व्यक्ति से गिड़गिड़ाते हुए बोली, ‘‘मुझे छोड़ दीजिए, मैं आप के हाथ जोड़ती हूं.’’
‘‘मैं तुम्हें छोड़ दूंगा. यह बताओ तुम्हारा नाम क्या है?’’
‘‘मीनाक्षी.’’
‘‘पति का नाम?’’
‘‘धर्मेंद्र.’’
‘‘क्या करता है, वह?’’
‘‘नगर निगम में लेखाधिकारी हैं.’’
‘‘उस सुनसान सड़क पर क्या कर रही थी?’’
‘‘सहेली के यहां पार्टी में गई थी. औटो का इंतजार कर रही थी.’’
‘‘झूठ बोल रही है, एक सभ्य औरत रात को अकेली नहीं घूमती. यदि घूमती भी है तो साथ में कोई पुरुष होता है. यह क्यों नहीं कहती कि ग्राहक ढूंढ़ रही थी. निश्चित ही तू वेश्यावृत्ति करती है.’’
‘‘नहींनहीं… मैं वेश्यावृत्ति नहीं करती. मैं सभ्य घराने की महिला हूं.’’
‘‘बकवास बंद कर, यदि सभ्य घराने की होती तो रात को अकेली यों सड़क पर न घूमती. तुझ जैसी सभ्य घराने की औरतें पैसों के लिए आजकल चुपचाप वेश्यावृत्ति करती हैं,’’ उस व्यक्ति ने यह कह कर उसे वेश्या घोषित कर दिया.
वह पछता रही थी कि अकेली रात को क्यों बाहर निकली. फिर भी साहस कर के वह बोली, ‘‘अब आप को कैसे समझाऊं?’’
‘‘मुझे समझाने की कोई जरूरत नहीं. मैं तुझ जैसी औरतों को अच्छी तरह जानता हूं. तुम अपने पति को धोखा दे कर धंधा करती हो. पति को कह दिया, सहेली के यहां जा रही हूं. आज मैं तुम्हारा ग्राहक हूं, समझी,’’ कह कर उस ने कस कर मीनाक्षी का हाथ पकड़ लिया.
अब इस के चंगुल से वह कैसे निकले. कैसे कार से बाहर निकले. उस के भीतर द्वंद्व चलने लगा. इस समय उस के पांव पूरी तरह खुले थे. बस, पांवों का ही इस्तेमाल कर सकती है. उस ने चौराहे के पहले स्पीडब्रेकर को देख उस की जांघों के बीच जम कर लात दे मारी. खिड़की से टकरा कर उस का हाथ छूट गया. तत्काल उस ने दरवाजा खोला और कूद पड़ी.
जिस सड़क पर वह गिरी वहां 3-4 लोग खड़े थे. इस तरह फिल्मी दृश्य देख कर वे हतप्रभ रह गए. वे दौड़ कर उस के पास आए. उसे चोट तो जरूर लगी, मगर वह सुरक्षित थी. उन में से एक व्यक्ति बोला, ‘‘उस कार वाले ने गिराया.’’
‘‘नहीं,’’ वह हांफती हुई बोली.
‘‘क्या खुद गिरी?’’ दूसरे व्यक्ति ने पूछा.
‘‘हां,’’ कह कर उस ने केवल सिर हिलाया.
‘‘मगर क्यों गिरी?’’ तीसरे ने पूछा.
‘‘उस व्यक्ति ने मेरा किडनैप किया था.’’
‘‘कहां से किया?’’ चौथे व्यक्ति ने पूछा.
‘‘आजाद चौक से,’’ उस ने उत्तर दे कर सड़क की तरफ उस ओर देखा कि कहीं कार पलट कर तो नहीं आ रही है. उसे तसल्ली हो गई कि कार चली गई है तब उस ने राहत की सांस ली.
‘‘मगर उस व्यक्ति ने तुम्हारा किडनैप क्यों किया?’’ पहले व्यक्ति ने उस की तरफ शरारत भरी नजरों से देखा. उस की आंखों में वासना झलक रही थी.
‘‘उस्ताद, यह भी कोई पूछने की बात है कि इस परी का किडनैप क्यों किया होगा.’’
दूसरा व्यक्ति लार टपकाते हुए बोला, ‘‘भला हो, उस कार वाले का, जो इसे यहां पटक गया.’’
सड़क पर सन्नाटा था. इक्कादुक्का दौड़ते वाहन सड़क पर पसरे सन्नाटे को तोड़ रहे थे. उस ने देखा कि वह उन चारों के बीच घिर गई है, ‘इन की नीयत भी ठीक नहीं लगती. यदि इन्होंने भी वही हरकत की तो…’ सोच कर वह सिहर उठी.
‘‘कहां रहती हो?’’ तीसरे व्यक्ति ने पूछा.
‘‘अरे बेवकूफ, कार वाले ने हमारे लिए फेंका है और तू पूछ रहा है कहां रहती हो,’’ चौथे ने तीसरे को डांटते हुए कहा, ‘‘अरे, यह तो हम चारों की द्रौपदी है. चलो, ले चलो.‘‘
वह समझ गई, उन की नीयत में खोट है. एक गुंडे से उस ने पिंड छुड़ाया. अब 4 गुंडों के बीच फंस गई है. यहां से निकलना मुश्किल है. वह एक औरत है. उसे यहां भी बहादुरी दिखानी है. उसे इस जगह अब झांसी की रानी बनना है. इन गुंडों को सबक सिखाना है. वे चारों गुंडे उसे देख कर लार टपका रहे थे. ‘मीनाक्षी असली परीक्षा की घड़ी तो अब है. यदि इन से बच गई तो समझ लो जीत गई. गुंडों से लड़ना पड़ेगा. इन्होंने औरत को अबला समझ रखा है. बन जा सबला.’ वे चारों गुंडे कुछ करें इस के पहले ही वह बोली, ‘‘खबरदार, जो मुझे हाथ लगाया?’’
‘‘हम तुझे हाथ कहां लगाएंगे? हम तो 4 पांडव हैं. तू तो खुद हमें समर्पण करेगी?‘‘
वह व्यक्ति आगे बढ़ा तो वह पीछे हटी. और उस ने रास्ते की धूल उठा कर उस की आंखों में फेंकी और भाग ली. वे चारों उस के पीछेपीछे थे. वह हांफती हुई दौड़ रही थी. उस में गजब की ताकत आ गई थी. अगर आदमी में हौसला है तो सबकुछ पा सकता है. मीनाक्षी ने देखा, सामने से एक औटो आ रहा है. उसे हाथ से रोकती हुई बोली, ‘‘भैया, रुको.’’
औटो वाला जब तक रुके तब तक वे बहुत पास आ चुके थे. मगर तब तक वह भी औटो में बैठ चुकी थी. औटो वाले ने भी मौके की नजाकत देखते हुए तेज रफ्तार से औटो बढ़ा दिया. एक मिनट यदि औटो लेट हो जाता तो वे गुंडे उसे पकड़ चुके होते. वे थोड़ी देर तक औटो के साथ दौड़ते रहे, मगर थक कर चूर हो गए. अब औटो उन की पहुंच से दूर हो चुका था. उस ने राहत की सांस ली. औटो वाला बोला, ‘‘किधर जाना है?’’
‘‘आजाद चौक तक, बहुतबहुत धन्यवाद भैया, आप ने मेरी जान बचा ली.’’
‘‘लेकिन वे लोग कौन थे?‘‘
‘‘मुझे नहीं मालूम कौन लोग थे वे सब,’’ घबराती हुई मीनाक्षी कहतकहते चुप हो गई. उस ने सोचा औटो वाला कहीं और न ले जाए. आगे मीनाक्षी असलियत बता कर अपने को गिराना नहीं चाहती थी. औटो सड़क पर दौड़ रहा था. अब उन के बीच सन्नाटा पसरा हुआ था. वह उस की हर गतिविधि पर नजर रखे हुए थी. उस के भीतर एक दहशत भी थी. औटो में अकेली बैठी है. एकएक मिनट एकएक घंटे के बराबर लग रहा था. चेहरे पर भय की रेखाएं थीं. मगर, वह उसे बाहर ला कर अपने को कमजोर नहीं दिखाना चाहती थी. अंतत: उस का बंगला आ गया. उस ने औटो रुकवाया. ड्राइवर से किराया पूछा.
’’50 रुपए,’’ ड्राइवर के कहने के साथ ही उस ने पर्स में से 50 का नोट निकाल कर दे दिया. फिर उसे धन्यवाद दिया और भाग कर भीतर पहुंच गई.
धर्मेंद्र बोले, ‘‘बहुत देर कर दी, मीनाक्षी?’’
‘‘हां, धर्मेंद्र आज गुंडों के बीच मैं बुरी तरह से फंस गई थी, मगर उन का सामना किया, लेकिन मैं हारी नहीं,’’ यह कहते समय उस के चेहरे पर संतोष के भाव थे.
धर्मेंद्र घबरा गए और बिना रुके एकदम बोल पड़े, ‘‘झूठ बोल रही हो, तुम. गुंडों से क्या मुकाबला करोगी, इतनी ताकत है एक औरत में.’’
‘‘ताकत थी तभी तो सामना किया,’’ कह कर उस ने संक्षिप्त में सारी कहानी धर्मेंद्र को सुना दी. धर्मेंद्र आश्वस्त हो गए और उसे अपनी बांहों में भर लिया !
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